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रामभद्राचार्य जी का जीवन परिचय | Jagadguru rambhadracharya ka jeevan parichay

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म मकर संक्रांति के दिन 14 जनवरी 1950 को ब्राह्मण परिवार, शांति खुर्द गांव, जौनपुर जिला उत्तर प्रदेश में हुआ था |

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय

आज हम बात करेंगे रामभद्राचार्य जी का जीवन परिचय के बारे में, जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म मकर संक्रांति के दिन 14 जनवरी 1950 को ब्राह्मण परिवार, शांति खुर्द गांव, जौनपुर जिला उत्तर प्रदेश में हुआ था जगद्गुरु रामभद्राचार्य का बचपन का नाम गिरिधर रखा गया था |

जगद्गुरु रामभद्राचार्य की माता का नाम श्रीमती शची देवी मिश्र और उनके पिता का नाम श्री राज देव मिश्र था और उनके दादाजी भी थे जिनका नाम पंडित सूर्य बली मिश्र था उनकी मौसी थी जो कि मीराबाई की सबसे बड़ी भक्त थी उन्होंने मध्ययुगीन भारत में अपनी रचनाओं में भगवान कृष्ण को संबोधित करने के लिए गिरिधर नाम का प्रयोग किया था

जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जीवन परिचय ( jagadguru rambhadracharya ka jeevan Parichay ) मे जानेंगे उनकी आंखों की रोशनी किस उम्र में चली गई :-

जगदगुरू रामभद्राचार्य जी जब 2 महीने की ही हुए थे उसी उम्र में आंखों की रोशनी चली गई, उनकी आंखों में ट्रेकोमा नाम की बीमारी हुई थी 24 मार्च 1950 को पता चली और गांव में इलाज की अच्छी व्यवस्था ना होने के कारण उनकी आंखों का इलाज नहीं हो पाया |

उनके घर वाले श्री गिरिधर जी को लखनऊ के किंग जॉर्ज अस्पताल में भी ले गए थे जहां उनका 21 दिनों तक आंखों का इलाज चला, उनका काफी दिनों तक इलाज चला लेकिन उनकी आंखों की दृष्टि वापस नहीं लौटी | उस समय श्री गिरिधर जी 2 महीने के थे तभी से जगतगुरु रामभद्राचार्य अंधे हैं |

श्री गिरिधर आंखों से अंधे होने के कारण पढ़ लिख भी नहीं सकते थे और उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए ब्रेल लिपि का भी प्रयोग नहीं किया उन्होंने अपने जीवन में जो भी सीखा है सुनकर सीखा है और शास्त्रियों को निर्देश देकर रचना किया करते थे |

स्वामी रामभद्राचार्य के बचपन की दुर्घटना

यह बात है जून 1953 की, जब स्वामी रामभद्राचार्य के गांव में एक बाजीगर बंदरों के नृत्य का शो करने आया था और उसी शो को रामभद्राचार्य जी देखने गए थे एकदम वहां खड़े बालक सभी भागने लगे उनके साथ गिरधर भी भागने लगे और उसी समय गिरधर के साथ एक घटना हो गई कि वे एक सूखे कुएं में गिर गए वे काफी समय तक उस कुएं में फंसे रहे उसके बाद वहां से एक लड़की गुजर रही थी उसने गिरधर की आवाज सुनी फिर उसने देखा कि वह बालक फंसा हुआ है उसने उनकी मदद की और कुएं से बाहर निकाल लिया और इस प्रकार गिरधर की जान बच गई |

गिरधर ने अपनी शिक्षा का प्रारंभ उनके दादाजी से की थी क्योंकि उनके पिताजी तो मुंबई में काम करते थे उसके बाद उनके दादाजी ही उन्हें हिंदू महाकाव्य रामायण और महाभारत के कई प्रसंग और विश्राम सागर जैसी कई भक्ति रचनाएं सुनाएं करते थे और उसके बाद श्री गिरिधर ने मात्र 3 साल की उम्र में ही अपनी पहली कविता अवधी भाषा में लिखी | इस श्लोक मैं कृष्ण की यशोदा मां, कृष्ण को चोट पहुंचाने के लिए एक गोपी से झगड़ा कर रही हैं |

गीता और रामचरितमानस

श्री गिरिधर जब 5 साल के थे तभी उन्होंने अपने पड़ोसी पंडित मुरलीधर मिश्रा से, मात्र 15 दिनों में ही भगवत गीता को याद कर लिया जिसमें भगवत गीता के अध्याय और श्लोक संख्या के साथ कम से कम 700 श्लोक थे | जब गिरिधर मात्र 7 वर्ष के थे तभी उन्होंने अपनी दादा जी की मदद से 60 दिनों में ही तुलसीदास के पूरे रामचरितमानस को याद कर लिया था उसके बाद उन्होंने 1957 में रामनवमी के दिन उपवास करते हुए संपूर्ण महाकाव्य का पाठ किया था |

और 52 साल के बाद 30 नवंबर 2007 को दिल्ली में मूल संस्कृत पाठ और हिंदी टिप्पणी के साथ एक धर्म ग्रंथ का पहला ब्रेल संस्करण किया

जब गिरिधर मात्र 11 वर्ष के थे तब उनके घर परिवार के एक शादी समारोह में जा रहे थे लेकिन उस शादी समारोह में गिरधर को जाने से मना कर दिया इसका कारण तो यह मानते थे कि इनको ले जाना एक अपशगुन होगा उस समय कहीं भी उनकी उपस्थिति को अपशगुन मानते थे क्योंकि बचपन से अंधे हो गए थे |

जगद्गुरु रामभद्राचार्य की शिक्षा के बारे में

श्री गिरिधर ने 17 साल की उम्र तक किसी भी स्कूल में जाकर शिक्षा प्राप्त नहीं की, उन्होंने बचपन में ही रचनाएं सुनकर काफी कुछ सीख लिया था गिरधर के घर परिवार के चाहते थे कि गिरिधर एक कथावाचक बने उनके पिताजी ने गिरधर को पढ़ाने के लिए कई ऐसे स्कूल में भेजने को चाहा जहां अंधे बच्चों को पढ़ाया जाता है लेकिन उनकी मां ने नहीं जाने दिया उनकी मां का मानना था कि अंधे बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता |

उसके बाद गिरधर ने 7 जुलाई 1967 को हिंदी अंग्रेजी संस्कृत व्याकरण जैसे कई सब्जेक्ट को पढ़ने के लिए एक गौरीशंकर संस्कृत कॉलेज में प्रवेश ले लिया श्री गिरधर ने सीखने के लिए ब्रेल लिपि भाषा का प्रयोग नहीं किया उन्होंने अपने जीवन में जो भी सीखा है सिर्फ सुनकर ही सीखा है |

उसके कुछ दिनों के बाद उन्होंने भुजंगप्रयत छंद में संस्कृत का पहला श्लोक रचा | बाद में उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विद्यालय में प्रवेश किया, उसके बाद 1974 में बैचलर ऑफ आर्ट्स परीक्षा में टॉप किया और फिर उसी संस्थान में मास्टर ऑफ आर्ट्स किया |

और 30 अप्रैल 1976 को विश्वविद्यालय में पढ़ाने के लिए श्री गिरिधर को आचार्य के रूप में घोषित किया गया, मास्टर डिग्री कंप्लीट होने के बाद | उसके बाद गिरधर ने अपना जीवन समाज सेवा और विकलांग लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया, उसके बाद 9 मई 1997 से गिरधर को सभी लोग रामभद्राचार्य के नाम से जानने लगे थे |

श्री गिरिधर ने 19 मई 1983 को वैरागी दीक्षा ली इस समय गिरिधर, रामभद्रदास के नाम से जाने लगे थे उसके बाद 1987 में रामभद्र दास ने चित्रकूट में तुलसी पीठ नाम से सामाजिक सेवा और धार्मिक संस्थान की स्थापना की |

जगद्गुरु रामानंदाचार्य का पद कब मिला

24 जून 1988 मे रामभद्र दास को काशी विद्वत परिषद द्वारा तुलसी पीठ में जगद्गुरु रामानंदाचार्य के रूप चुना गया उसके बाद उनका अयोध्या में अभिषेक किया गया जिसके बाद उन्हें स्वामी रामभद्राचार्य के नाम से जानने लगे |

स्वामी रामभद्राचार्य ने अयोध्या मामले में गवाही दी

स्वामी रामभद्राचार्य ने अयोध्या में राम मंदिर होने की 437 प्रमाण कोर्ट को दिए हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य प्राचीन ग्रंथों का उल्लेख में बताया है कि बाल्मीकि रामायण के बाल खंड के आठवें श्लोक में श्री राम जन्म के बारे बताया है उसके बाद स्कंद पुराण में भी बताया गया है इसके अलावा पूर्व अथर्ववेद के दशम कांड के 31 वे द्वितीय मंत्र में स्पष्ट कहा गया है 8 चक्रों व नो प्रमुख द्वार बाली अयोध्या देवताओं की है उसी अयोध्या मे मंदिर है |

स्वामी रामभद्राचार्य ने कहां है वेद में राम जन्म का स्पष्ट प्रमाण दिया गया है कहते हैं रामचरितमानस में स्पष्ट लिखा है की बाबर के सेनापति और दुष्ट लोगों ने राम जन्मभूमि के मंदिर को तोड़कर मस्जिद को बनाया है और कई हिंदुओं को मार डाला तुलसीदास ने इस पर अपना दुख भी प्रकट किया है लेकिन वहां पर मंदिर तोड़े जाने के बाद भी हिंदू राम की सेवा करते थे वही साधु-संत सोते थे और प्रतीक्षा करते थे कभी तो रामलला की कृपा होगी और एक ना एक दिन यहां पर मंदिर का निर्माण जरूर होगा |

स्वामी रामभद्राचार्य को भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक, 2015 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया | इसके अलावा स्वामी रामभद्राचार्य जी को कई नेताओं के द्वारा सम्मानित किया गया है जैसे कि इंदिरा गांधी डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम और भी कई राज सरकार के नेताओं के द्वारा सम्मानित किया गया है |

रामभद्राचार्य का आश्रम कहां है

स्वामी रामभद्राचार्य चित्रकूट में तुलसी पाठ नामक नामक धार्मिक स्थल और सामाजिक सेवा संस्थान के संस्थापक हैं जगद्गुरु रामभद्राचार्य चित्रकूट में रहते हैं |

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