Premanand ji maharaj biography | प्रेमानंद जी महाराज का जीवन परिचय
प्रेमानंद महाराज जी का जन्म एक सात्विक और विवेक परिवार में हुआ था उनका जन्म एक गरीब ब्राह्मण परिवार में कानपुर उत्तर प्रदेश में हुआ था |
प्रेमानंद जी महाराज की जीवनी
आज हम बात करने वाले हैं भारत देश के एक ऐसे महान संत के बारे में, जिनकी कम से कम 19 वर्षों से दोनों किडनी खराब है, और जिन से मिलने के लिए अनुष्का, विराट कोहली एंड एमबीए चायवाला और बड़े-बड़े बिजनेसमैन महाराज जी के दर्शन करने के लिए आते हैं |
आज हम उनके संपूर्ण जीवन के बारे में बात करेंगे, हम बात करने वाले हैं श्री हित प्रेमानंद जी महाराज के बारे में, जिनका जन्म एक गरीब परिवार, कानपुर जिला उत्तर प्रदेश में हुआ | इनका का बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था |
प्रेमानंद जी महाराज की माता का नाम श्रीमती रामादेवी था और उनके पिता का नाम श्री शंभू पांडे था प्रेमानंद जी महाराज को पीले बाबा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं |
प्रेमानंद जी महाराज की उम्र :– प्रेमानंद महाराज जी 2023 में लगभग 60 साल के हो चुके है महाराज जी का बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था प्रेमानंद जी महाराज को पीले बाबा के नाम से भी जाना जाता है |
महाराज जी के घर में हमेशा से ही संत महात्माओं का आना जाना लगा रहता था जिनके कारण उनको सत्संग अपने घर में ही सुनने को मिल जाते थे और यह सत्संग सुनते – सुनते महाराज जी के हृदय में अध्यात्म का बोध हुआ |
जब महाराज जी पांचवी कक्षा में पढ़ते थे तभी उन्होंने चालीसा कंठस्थ याद कर ली थी | प्रेमानंद जी महाराज के दादाजी भी संत थे महाराज जी ने भी संत बनने का दृढ़ निश्चय लिया और भगवान को पाने की इच्छा जागृत कर ली |
उसके बाद महाराज जी 13 साल की उम्र में ही रात को 3:00 बजे अपना घर छोड़कर निकल गए, घर से निकलने के बाद महाराज जी ने संन्यास ले लिया यानी कि ब्रह्मचर्य को अपना लिया | महाराज जी का ब्रह्मचर्य का जीवन बड़ी कठिनाइयों से निकला | यहां पर उनका नाम बदला उनका नाम बदलकर आनंद स्वरूप ब्रह्मचारी रखा |
प्रेमानंद जी महाराज जी संत कैसे बने
महाराज जी के यहां हमेशा से अध्यात्मिक माहौल बना रहता था उनके घर में संतों और महात्माओं का हमेशा आना जाना लगा रहता था संतों और महात्माओं के मुख से कीर्तन और भजन सुनते सुनते उनका ध्यान अध्यात्मिक की ओर जुड़ने लगा
प्रेमानंद महाराज जी को कक्षा पांचवी में ही चालीसा कंठस्थ याद हो गई थी और वे प्रतिदिन मंदिर जाने लगे और चालीसा का रोज पाठ करने लगे और तिलक लगाकर रोज स्कूल जाते थे |
और एक टाइम तक उनका मन आध्यात्मिक भजन कीर्तन से इस तरह जुड़ गया है कि एक टाइम उनके मन में यह विचार आने लगे कि मेरे तो इस संसार में केवल भगवान है इसके अलावा मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है और इसके बाद इन्होंने एक दिन घर छोड़ने का विचार कर लिया
और उसके कुछ दिनों के बाद प्रेमानंद जी महाराज रात को 3:00 बजे अपना घर छोड़कर चले गए थे आगे चलकर इन्होंने संन्यास ले लिया और महाकाव्य स्वीकार करने पर उन्हें स्वामी आनंद आश्रम नाम मिला, खराब मौसम हो या फिर जाने का समय हो रोज तीन बार गंगा स्नान किया करते थे
प्रेमानंद जी महाराज गंगा नदी को दूसरी मां मानते हैं
प्रेमानंद जी महाराज का अधिकांश समय गंगा नदी के किनारे बीतता था क्योंकि महाराज जी ने रहने के लिए आश्रय स्वीकार नहीं किया है क्योंकि भी सब कुछ त्याग चुके थे सिर्फ उनको भगवान की भक्ति करना था |
महाराज जी ने ज्यादा समय गंगा नदी के किनारे ही बिताया, जिसके कारण गंगा नदी को अपनी दूसरी मां मानने लगे | महाराज जी गंगा नदी में तीन बार स्नान करते थे यह नियम महाराज जी का कभी नहीं टूटा ठंड हो या कुछ भी हो महाराज जी को तीन बार गंगा नदी में स्नान करना है तो करना ही है |
प्रेमानंद जी महाराज किडनी
महाराज जी की पिछले 19 सालों से दोनों किडनी खराब है फिर भी महाराज जी रोज सत्संग प्रवचन नित्य नियम के कार्य करते हैं उन्हें देखकर एक क्षण भी ऐसा नहीं लगता है कि वे बीमार हैं उनका कहना है कि यह सब राधारानी जी की कृपा है और उन्हीं की कृपा से आज उनकी खराब किडनी कार्य कर रही हैं
प्रेमानंद जी महाराज के जीवन टर्निग पॉइंट
प्रेमानंद महाराज जी बनारस में एक रोज पेड़ के नीचे ध्यान लगाए हुए थे तभी श्री श्यामा श्याम की कृपा से वृंदावन की महिमा के प्रति आकर्षित हुए आगे चलकर एक संत की प्रेरणा ने उन्हें एक रासलीला में भाग लेने के लिए राजी किया जो स्वामी श्री राम शर्मा की ओर से आयोजित की जा रही थी
उन्होंने 1 महीने तक रासलीला में हिस्सा लिया सुबह श्री चैतन्य महाप्रभु की लीला और रात में श्री श्यामा श्याम की रासलीला देखते थे 1 महीने में ही इन लीला को देखने में इतना मग्न और आकर्षित हो गए थे कि उनके बिना जीवन जीने की कल्पना भी नहीं कर पाते थे यह एक महीना उनकी जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट माना जाता है
प्रेमानंद जी महाराज वृंदावन कैसे पहुंचे
बाद में स्वामी जी की सलाह पर और श्री नारायण दास भक्ति माली की मदद से महाराज जी मथुरा जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए, ना जानते हुए कि वृंदावन हमेशा के लिए उनका दिल चुरा लेगा बिना किसी परिचित के वृंदावन पहुंचे थे जहां शुरुआती दिनचर्या में वृंदावन की परिक्रमा उस श्री बांके बिहारी के दर्शन शामिल हुआ करते थे इस तरह प्रेमानंद महाराज जी का दिल वृंदावन में बस गया